Friday 23 May 2014

**~बाकी रहा .. तेरा निशाँ !~**

अंतरजाल पर साहित्य प्रेमियों की मासिक पत्रिका 'साहित्य कुञ्ज' के मई द्वितीय अंक में प्रकाशित मेरी कुछ क्षणिकाएँ 
http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/A/AnitaLalit/kshanikayen.htm


1.
प्रेम की बेड़ियाँ... 
फूलों का हार,
विरह के अश्रु...
गंगा की धार,
समझे जो वेदना
प्रिय के मन की... 
योग यही जीवन का...
है यही सार !

2.
दिल की मिट्टी थी नम...
जब तूने रक्खा पाँव...,
अब हस्ती मेरी पथरा गयी..
बस! बाकी रहा .. तेरा निशाँ !

3.
सपने दिखाए तुमने...
पंख दिए तुमने...
और कह दिया मुझसे...
उड़ो! खूब ऊँचा उड़ो!
मगर मैं कैसे उड़ती?
उन सपनों के पंखों पर....
पाँव रखकर...
तुम्हीं खड़े थे...
और तुम्हें एहसास ही नहीं था...!

4.
खिलखिलाती, मुस्कुराती बहारें..., 
वो सावन की पुलकित बौछारें...! 
भिगो जाती थीं तन मन को जो... 
कहाँ गुम गयीं वो.....
रिमझिम-रुनझुन फुहारें....?
बनकर परछाईं...आज भी दिल में....
बरसता है वो सावन.....! 
भीगता नहीं मगर अब.... सूखा मन...! 
फिर क्यों ... कहाँ से... कैसे..... महक उठे...... 
आँखों में..... ये सोंधापन....???

5.
कैसी ये दुनिया !
क्या इसकी तहज़ीब में जीना !
बढ़ाए जो हाथ कोई ...
समझ ले उसी को ज़ीना...!

6.
ज़िंदगी की सुबह...
जिनके हौसलों से आबाद हुई,
शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
उनसे से ही बेज़ार हुई....?

7.
कितनी पाक होगी वो इबादत... 
कितना ख़ूबसूरत होगा वो नज़ारा.. 
ख़ुदा के सजदे से जो सिर उठे.... 
सामने आँखों के हो सूरत-ए-यारा.....!

Monday 12 May 2014

~**माँ तो हल्दी-चन्दन'~ माहिया**~

1
आँखों में है सावन
दिल ममता-आँगन
माँ तू कितनी पावन।

2
हर दुःख को सह जाती
उफ़ न कभी करती
माँ तो बस मुस्काती !

3
आँचल में हैं सारे 
मुन्ने के सपने
क्या चन्दा , क्या तारे। 

4
जिस घर माँ मुस्काती
ईश्वर की बाती
कण-कण नूर खिलाती।

5
माँ पहला आखर है
नींव बने घर की
माँ  ऐसा पत्थर  है  ।

 6.
सबको जीवन देती
 सहती धूप कड़ी
अपने सपने पीती  ।

7
कैसा दुःख क्या चिंतन
दर्द सभी भागें
माँ तो हल्दी-चन्दन।

8.
रिश्तों को वो सीती
छुपकर है  रोती
माँ घुट-घुट कर जीती।

9.
जीवन भर ना हारी
अब जब उम्र ढली
अपने बदलें पारी !

10
अपने दिल में पाती 
बेटी की धड़कन
माँ की प्यारी साथी ।

11
माँ के भीगे नैना
जो ना पढ़ पाए 
उसका क्या है जीना ।