Monday 25 November 2013

**~'दीपशिखा सी....~** -चोका

दीपशिखा सी
जलती हरदम
तेरे आँगन
कुछ यूँ सुलगती
मैं पिघलती
अंदर ही अंदर!
आँसू में डूबे  
अरमान जलते
और फैलता 
उदासी का उजाला
तन्हाई ओढ़े!
सुलगते जो ख़्वाब,
सभी हो जाते
ख़ामोश, धुआँ-धुआँ
भीगता वो आँगन!